How to interact with people :- लोगों से बातचीत कैसे करें, बातचीत करना भी एक कला है . अपना प्रभाव बनाने के लिए आपको अच्छे से बात करना आना चाहिए आइये जानते है,लोगों से बातचीत कैसे करें ( How to interact with people in hindi ) किसी समारोह, में नये पड़ोसी से या दफ्तर में पहली बार किसी से बातचीत का सिलसिला शुरू करने के लिए विषय या मुद्दे की कोई कमी नहीं होती। कोई भी विषय या मुद्दा लेकर बात शुरू की जा सकती है। हाल ही में घटी कोई घटना अक्सर दो व्यक्तियों के बीच बातचीत शुरू होने में काफी सहायक सिद्ध होती है, लेकिन सबसे आम विषय होता है-मौसम का जिक्र बातचीत का सिलसिला आसानी से शुरू किया जा सकता है।
लोगों से बातचीत कैसे करें | how to interact with people
इस बात का बहुत ध्यान रखना चाहिए कि सिर्फ हां या नहीं उत्तर वाले प्रश्नों से अच्छी बातचीत होने की संभावना कम रहती है। क्योंकि ऐसे प्रश्नों के उत्तर मुश्किल से एक या दो शब्दों के ही होते हैं। जैसे- “आज तो धूप इतनी तेज है कि सहन करना मुश्किल हो रहा है, क्यों ?” या “आपका क्या विचार है- गर्मी और बढ़ेगी अभी ?”
अच्छी बातचीत के लिए ये विषय उचित तो है लेकिन यदि आप उपर्युक्त ढंग से प्रश्न करते हैं, तो उनके जवाब ‘हां’, ‘नहीं’ या ज्यादा से ज्यादा जी हॉ’. जी नहीं में ही मिल पाएंगे और यह विषय यही खत्म हो जाएगा। संभव है कि बातचीत भी यही खत्म हो जाए। यदि आप यही बातें इस तरह पूछें- ‘मुझे तो लगता है कि इस बार पिछले वर्षों की तुलना में ज्यादा गर्मी पड़ेगी, बहुत ज्यादा गर्मी पड़ने से पानी की कमी भी हो सकती है। आपका क्या ख्याल है या, “अभी तो अप्रैल का महीना है तब यह हाल है गर्मी का मई-जून में क्या होगा ?” तो बातचीत बेशक आगे बढ़ सकती है। एक अच्छे वार्ताकार होने के लिए जरूरी है कि आप एक अच्छे श्रोता भी हो।
सिर्फ इतना जाहिर कर देना कि आपको दूसरे की बातों में दिलचस्पी है. काफी नहीं है। आपको पूरे ध्यान और दिलचस्पी से उसकी बात सुननी भी चाहिए। जब आप किसी की बात खूब गौर से सुनते हैं तो उतने ही अच्छे तरीके से आप उन बातों का जवाब भी दे पाते हैं। और जब आपके बोलने का मौका आता है, तो आप एक वार्ताकार साबित हो सकते हैं। किसी की बात सुनने के बाद उससे संबंधित प्रश्न कर देना एक अच्छे बातचीत करने वाले की पहचान है।
फेस रीडिंग | Face Reading
Face Reading : यदि आप बोलने वाले के चेहरे की एक तरफ बराबर नजर रखते हैं तो उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव से ही बहुत कुछ आपकी समझ में आ जाएगा। आप बोलने वाले और उसकी बातों में अपनी दिलचस्पी जाहिर करने के लिए कभी-कभी सिर को जुंबिश भी दे सकते हैं या इधर-उधर थोड़ा-बहुत घुमा भी सकते हैं, जिससे किसी बात पर उससे हमदर्दी या फिर उसकी किसी बात पर आपके आश्चर्य का प्रदर्शन हो सके।
लेकिन इसका ख्याल रखें कि आप ये सब उसी समय करें, जब इसका वाकई मौका हो। यह नहीं कि आप बेकार में ही सिर इधर-उधर घुमाते ही रहें, चाहे इसकी जरूरत हो या न हो।
जब बोर होने लगें यदि आप महसूस करें कि आप किसी ऐसी जगह फंस गये हैं, जहां हो रही बातों से आप बोर हो रहे हैं या यह महसूस करें कि अब यहां बातचीत का सिलसिला काफी लंबा हो चुका है और इसे अब समाप्त कर देना चाहिए तो इससे छुटकारा पाने का अचूक नुस्खा है- “माफ कीजिएगा. मैं दो मिनट में आता हूँ।” इस तरह कहकर जाने में कोई बुरा नहीं मानेगा।
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और कुछ देर बाद जब आप वापस आयें तो अपनी पसंद के मुताबिक किसी नये टॉपिक पर बात करना शुरू कर दें या फिर किसी अन्य व्यक्ति से बातचीत का सिलसिला शुरू कर दें या फिर आप अपने पास किसी जानकार व्यक्ति को देखें तो इस तरह कहते हुए उसकी ओर लपकें- हाय! महेश तुम ? उस रोज तो तुम अचानक गायब ही हो गये थे।”
महेश इस समय किसी से बात करने में व्यस्त है तो आप यह कहकर वहां से खिसक सकते हैं-“तुम दोनों की बातें जल्दी तो खत्म नहीं होगी। मैं एक मिनट में आया।” ऐसी जगहों पर यदि आप दुबारा वापस न भी आये तो कोई इसका अहसास तक नहीं करेगा।
चुप रहना भी सीखें: कभी-कभी ऐसे मौके भी आते हैं, जहां बोलने से ज्यादा चुप रह जाना बेहतर होता है। कभी-कभी मस्तिष्क के किसी कोने से हल्की-सी यह आवाज भी आती है, “इस वक्त बोलना उचित नहीं।” बेहतर होगा, कि हम इस आवाज को अनसुनी न करते हुए, खामोश ही रह जायें और उस बातचीत में शामिल न हो। यह हमारे लिए और जिससे हम अनावश्यक रूप से बात करने जा रहे थे, उसके लिए फायदेमंद साबित होगा।
हह्यूमर का इस्तेमाल | How to interact with people
:ह्यूमर या हास्य का इस्तेमाल बातचीत को रोचक बना देता है, पर हह्यूमर अन्य बातों की तरह जबरदस्ती थोपना भी पसंद नहीं किया जाता। हास्य विभिन्न प्रकार से पैदा किया जा सकता है। हर व्यक्ति के अपने अलग तरीके और स्टाइल होते हैं। बहरहाल! आपके हह्यूमर का जो भी स्टाइल हो, उसे सहज स्वाभाविक रूप में ही प्रदर्शित होना चाहिए। बातचीत के दौरान यह न महसूस होने पाये कि आप हास्य पैदा करने के लिए जबरदस्ती को बात या लतीफा ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं।
इस सिलसिले में टाइमिंग का भी बहुत महत्व होता है। उचित समय पर और उचित तरीके से हास्य का उपयोग ही कारगर साबित होता है। नहीं तो हास्य की बजाय फूहड़पन आ जाता है। आपने अगर आफिस में कोई बहुत ही रोचक लतीफा सुन रखा है, तो भी शाम को किसी मौके पर बातचीत के दौरान सिर्फ वह लतीफा सुनाने के लिए ही किसी की बात को काट न दें। यह बहुत ही भद्दा महसूस होता है और बातचीत का मजा किरकिरा हो जाता है।
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