Calendar history in hindi : पिछली एक जनवरी को भोर को जब मैंने पड़ोस की चाची को संबोधित करते हुए कहा, “नया साल मुबारक हो चाची ( Happy New Year)।” तो चाची ने आंगन लीपना रोककर एक पल मुझे देखा और उबल पड़ी थीं, “कहाँ का नया साल ? अभी तीन महीने दूर है नया साल ( New Year ) ।”
“भला कैसे?” मैं अचंभित सा बोल पड़ा। ” अरे आग लगे ऐसी पढ़ाई को अपना ही साल भूल गए। अरे बेटा ये तो अंग्रेजी साल है (Calendar history in hindi) । अपना साल ( Happy New Year ) तो चेत में शुरू होगा, चेत मे।” चाची ने मुझ पर घड़ों पानी डाल दिया था। चाची अपनी जगह बिलकुल ठीक थीं। वास्तव में हमारा राष्ट्रीय वर्ष ( National year ) या संवत् शक संवत्’ है जो चैत्र में आरंभ होता है।
आमतौर पर हर घर में तारीख-वार, तीज त्योहार और छुट्टियां देखने के लिए एक छोटे-मोटा कैलेंडर ( Calendar ) तो होता ही है। हमारे घर में जो कैलेंडर था, वह अंग्रेजी तारीख के साथ-साथ शक संवत् को तिथि भी बताता था। हम उसे ही उठाकर पलटने लगे। ईस्वी सन और शक संवत् के अलावा हमें उस पर पांच-छह सन् या संवत् और भी देखने को मिले। बस फिर तो हमारी जिज्ञासा बढ़ती ही गई।
ये सब कैसे शुरू हुए, इनका क्या मतलब हैं? कैलेंडर कैसे बना ? ( Calendar history in hindi) किसने बनाया ? कब बनाया? और इस कब, कैसे, किसने में इतने डूब गए कि चैत्र की पहली तारीख को चाची को मुबारकबाद देना ही भूल गए।
लगता है अब तक तुमने भी अपने घर का कैलेंडर उतारकर पलटना शुरू कर दिया होगा। पर कब, कैसे, किसने का उत्तर तो इतिहास में जाने पर मिलेगा। आओ चलते हैं वहीं
पहले यह देखें कि ईसा सन् या शक संवत् 10 जैसे प्रचलित वर्षों के अलावा कुछ ऐसे वर्ष भी है,
जिनका हम इस्तेमाल तो करते हैं, पर उनकी गिनती नहीं करते या अलग ढंग से करते हैं। जैसे सरकारी कामकाज के लिए एक वित्त वर्ष होता है जो 1 अप्रैल से 31 मार्च तक चलता है। बैंकों में भी प्रचलन है। शिक्षा का अपना एक वर्ष है जो आमतौर पर जुलाई से जून तक चलता है। व्यापारियों का वर्ष दीपावली से दूसरी दीपावली तक चलता है। ऐसे और भी वर्ष होंगे। वास्तव में हम अपनी आयु का जिस तरह हिसाब लगाते है वह भी एक अपनी तरह का वर्ष है।
कैलेंडर की जरूरत क्यों पड़ी ? Calendar history in hindi
वास्तव में आज हम जानते हैं कि एक वर्ष वह समय है, जो पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में लगता है। इसे सौर वर्ष कहा जाता है। वर्ष समय को मापने की एक इकाई है। प्रागैतिहासिक काल में समय गणना वर्ष की बजाय ऋतुचक्र द्वारा की जाती थी। ‘वर्ष’ स्वयं एक ऐसा शब्द है, जिसका मतलब एक वर्षा काल के आरंभ से दूसरी वर्षा के आरंभ होने तक के काल या समय से है।
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ऐसा समझा जाता है कि विकसित होती मानव जाति ने जरूरत पड़ने पर सूर्य, चंद्रमा तथा तारों की गतियों पर ध्यान दिया और उससे समय का मापन आरंभ हुआ। सूर्य के उगने और डूबने को रात और दिन का विभाजन माना। यह बात भी मानव के ध्यान में आई कि एक पूर्ण चंद्रमा से दूसरे पूर्ण चंद्रमा तक आने में लगभग 29 दिन लगते थे, इसे एक माह कहा। संभवतः तब मनुष्यों ने इन चंद्र महीनों का हिसाब रखना आरंभ किया और पाया कि ऐसे 12 महीने मिलकर चार ऋतुओं का एक चक्र पूरा करते हैं। इस प्रकार हमारे आज के कैलेंडर का गणित धीरे-धीर विकसित हुआ !
कैलेंडर की जरूरत क्यों पड़ी? | calendar history in hindi
कैलेंडर पर आगे बात करने से पहले यह समझन की कोशिश करें कि आखिर इसकी जरूरत क्यों पड़ी। Calendar history इतिहास में झांकने पर ऐसे दो उदाहरण देखने को मिलते है। लगभग 5000 साल पहले सुमेरियन सभ्यता के छोटे-छोटे राज्य थे। इन राज्यों में जमीन की देखभाल करना ‘प्रीस्ट’ के जिम्मे था। प्रीस्ट एक तरह से शासक का प्रतिनिधि और राज्य का पुजारी था। जमीन में नहरें खोदना, उसे खेती के योग्य बनवाना, सिंचाई करवाना, फिर उनमें गेहूं, जौ तथा प्याज़ आदि की बुवाई करवाना, फसल तैयार होने पर कटवाकर बाजारों में पहुंचवाना आदि उसकी जिम्मेदारियां थीं।
ये सब ऐसे काम थे जिनमें समय का विशेष ध्यान रखना जरूरी था। ये काम प्रतिवर्ष निश्चित समय पर आरंभ करने होते थे। एक सुव्यवस्थित कैलेंडर के बिना ऐसा करना संभव नहीं था। दूसरी और सुमेरियन लोगों को अपने त्यौहारों तथा देवताओं की पूजा-अर्चना के लिए भी एक निश्चित दिन तय करना होता था। उसी निश्चित दिन पर सभी स्थानों पर एक साथ पूजा-अर्चना की जाती थी। हम अंदाज लगा सकते है कि निश्चित रूप से कैलेंडर जैसी उनकी कोई व्यवस्था रही होगी।
दूसरा उदाहरण मिस्र का है। वहां नील नदी में आने वाली बाढ़ अपने साथ उपजाऊ मिट्टी लेकर आती थी और खेतों में फैलाकर चली जाती। इस पर लोग खेती करते थे। बाढ़ प्रतिवर्ष एक निश्चित समय पर आती थी। मिस्त्रवाशियों ने देखा कि बाढ़ आने के कुछ दिन पहले एक चमकीला तारा (जिसे आज हम लुब्धक के नाम से जानते हैं) सूर्योदय के पहले आकाश में नजर आता है। उन्होंने इसे नील में बाढ़ का संकेत मानना शुरू कर दिया।
चूंकि तारा एक निश्चित अवधि (लगभग एक वर्ष) के बाद पुनः दिखाई देता था, इसलिए उसके दिखने को नववर्ष की शुरूआत भी माना जाने लगा। फिर वर्ष भर को अन्य गतिविधियों खेती की तैयारी, बोनी, फसल की कटाई तथा अन्य तीज-त्यौहार, सामाजिक कार्य लुब्धक तारे के दिखने से तय होने लगे। इन सब कारणों से ही एक विस्तृत और व्यवस्थित कैलेंडर की जरूरत पड़ी।
राशिचक्र से उभरा कैलेंडर
Calendar history in hindi : तुमने हाथ देखकर भूत-भविष्य बताने वाले ज्योतिषियों को जरूर देखा होगा। सितारों का फेर, साढ़े साती शनि, राहू-केतु की मार और ऐसी तमाम आतंकित करने वाली अंधविश्वासो अभिव्यक्तियां हमारे ज्योतिषी ही नहीं दुनिया में और भी बहुत से लोग करते हैं। शुरूआत संभवत: तीन के खगोलविज्ञानी पुजारियों से की थी। प्रकृति में घटने वाली कुछ नियमित घटनाओं और आकाश में दिखाई देने वाले नालिय पिंडों की गतिविधि में तालमेल बिठाने की कोशिश होने लगी।
धीरे धीरे लोगों के मन में यह विश्वास करने लगे पृथ्वी पर होने वाली हर घटना आकाशीय पिंडों से नियंत्रित होती है। ऐसी एक घटना वे प्रतिदिन देखते वही सूर्योदय से दिन की शुरुआत और सूर्यास्त से रात्रि की। लेकिन अधिकांश घटनाओं में केवल एक संयोग की बात थी। खगोलविज्ञानी पुजारियों ने इसका लाभ उठाया और इसके साथ अंधविश्वासों की ऐसी खिचड़ी पकाई कि अनपढ़ और आम लोगों के बीच भविष्यवाणी करना उनके लिए लाभदायक व्यवसाय सिद्ध हुआ। पर उनका बहुत-सा खगोल ज्ञान इतना व्यवहारिक और ठीक था जिसका हम आज भी उपयोग करते हैं।
इन खगोलविज्ञानियों ने आकाश की विशाल वृत्ताकार पट्टी (जो वास्तव में सूर्य के इर्द-गिर्द पृथ्वी द्वारा की जाने वाली परिक्रमा का पथ है को सावधानी पूर्वक बारह समान भागों में बांटा। इसे ‘राशिचक्र’ कहा गया। इसे “ऋतूचक्र ” भी कहा जाता है। प्रत्येक भाग की पहचान के लिए उस हिस्से में आने वाले तारामंडल या तारों की आकृति के आधार पर नाम तय किए गए। इनके नाम है मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ तथा मीन।
सूर्य अपनी यात्रा में (यानी पृथ्वी की गति के कारण ) एक से दूसरे तारामंडल में जाता प्रतीत होता था। राशि के दो मंडलों के बीच की दूरी पार करने में सूर्य को जितना समय लगता था, मोटे तौर से चंद्रमा उतने ही समय में अपनी कला पूर्ण कर लेता था। समय के इस अवधि की मास या महीना कहा गया। सूर्य को राशिचक्र के बारह भागों में से गुजरकर एक पूरा चक्कर लगाने में बारह -मास यानी एक वर्ष लगता था।
इस हिसाब से 30 दिन का एक महीना और 360 दिन का एक वर्ष माना।
लेकिन बेबिलोन के खगोलविज्ञानियों को शीघ्र ही इस तथ्य का भान हो गया कि उनका बनाया वर्ष वास्तविक सौर वर्ष की तुलना में छोटा है। सौर वर्ष लगभग 365 दिन का था। यानी 5 दिन बड़ा। इससे हर वर्ष 30 दिन कर एक पूरा महीना बढ़ जाता था। उन्होंने इसका एक समाधान निकाला। हर पांच वर्ष बाद, एक वर्ष बारह की बजाय तेरह मास का माने जाना लगा और इसे लीप वर्ष कहा गया।
वर्ष के महीने के नाम कैसे रखे गए
आज हम महीनों के लिए जिन नामों का उपयोग करते है ये प्राचीन रोमन नामों से आए है।
जनवरी :- | दो मुख वाले रोमन देवता ‘जैनुस’ के नाम से निकला। |
फरवरी :- | ‘फ्रेबुआ ‘ से, शुद्धि का यह त्यौहार 15 फरवरी को मनाया जाता था। |
मार्च :- | ‘मार्स’ या मंगल से, यह रोम के लोगों का युद्ध का देवता था। |
अप्रैल :- | लेटिन शब्द ‘अप्रैलिस से, इसका मूल अर्थ है खुलना, बसंत में वनस्पतियां खिलती है। |
मई :- | ‘माइया’ से, यह रोम में वृद्धि की देवी है। |
जून :- | शनि की पुत्री तथा बृहस्पति की पत्नी जूनो के नाम पर। |
जुलाई :- | जूलियस सीजर के नाम पर । |
अगस्त :- | रोमन सम्राट आस्टेवियस आगस्तस के नाम पर। |
सितंबर :- | लेटिन ‘सेप्टम अर्थात सात से, पुराने रोमन कैलेंडर मे यह सांतवा महीना था। |
अक्टूबर :- | लेटीन ‘आकटो ‘ अर्थात आठ से। |
नवंबर :- | लेटिन नोवेम’ अर्थात् नौ से। |
दिसंबर | लेटिन ‘डेसेम ‘ यानी दसवा से। |
दिनों के नाम
बेबिलोन वासियों ने दिनों के नाम सूर्य, चंद्रमा तथा उस समय ज्ञात पांच ग्रहो मंगल, बुद्ध, बृहस्पति और शनि के नाम पर रखे थे ये दिन भारत में भी इन्हीं नाम से जाने जाते है।
मिस्री कैलेंडर एक कदम आगे
Calendar history in hindi : मिस्र के खगोलविज्ञानी पुजारियों ने भी ऐसा ही एक कैलेंडर बनाया। पहला मिस्त्री कैलेंडर कब बना यह प्रमाणित करना कठिन है, पर कुछ इतिहासकार मानते हैं कि वह ईसा से 4,241 वर्ष पहले बना था। यह कैलेंडर भी 12 महीनों तथा 360 दिनों का था। सौर वर्ष से छोटा होने के कारण यह वर्ष भी पिछड़ने लगा। इस गड़बड़ को दूर करने के लिए प्रतिवर्ष 5 उत्सव दिन जोड़कर 365 दिन का साल बनाया गया। यह भी छोटा था। क्योंकि वास्तविक सौर वर्ष में 365 1/4 दिन थे। अंततः मिस्री कैलेंडर भी बेबिलोन के कैलेंडर की भांति प्रतिवर्ष चौथाई दिन से पिछड़ता हुआ ऋतू चक्र से दूर हटता गया। ऋतुचक्र से तालमेल बैठाना जरूरी था, क्योंकि इससे ही, वर्षा कब होगी, कब बोनी की तैयारी करना है, कब फसल तैयार होगी, कब वह कटेगी आदि बातों का अनुमान लगाया जाता था कैलेंडर के पिछड़ने से यह अनुमान गड़बड़ा सकता था।
ईसा पूर्व 238 वर्ष में मिस्र के राजा टॉलमी तृतीय ने इसका एक समाधान निकाला। उसने चौचाई दिन का हिसाब बिठाने के लिए कैलेंडर में प्रति चौथे वर्ष एक दिन बढ़ाने की व्यवस्था की। पर यह संशोधन पुजारियों ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि इससे उन्हें अपने धार्मिक उत्सवों को तिथियों में परिवर्तन करना पड़ता, और वह उन्हें मंजूर नहीं था।
किस माह में, कितने दिन
प्राचीन रोम में फरवरी को छोड़कर अन्य सब महीने 29 या 31 दिन के होते थे, क्योंकि विषम संख्याएं शुभ समझी जाती थीं। वर्ष का अंत अशुभ माना जाता था और फरवरी को सबसे छोटा महीना बनाया गया था। उसमे 28 दिन रखे गए थे।
सबसे पहले जूलियस सीजर ने महीनों के दिन इस प्रकार तय किए जनवरी, मार्च, मई, जुलाई, सितंबर और नवंबर माह 31-31 दिन के अप्रैल, जून, अगस्त, अक्तूबर और दिसंबर 30-30 दिन के। फरवरी 29 या 30 की।
8 ई.पू. में रोमन सम्राट ऑगस्तस ने अपने नाम पर रखे गए अगस्त महीने में एक दिन और जोड़ा और उसे 31 दिन का बना दिया। इससे फरवरी 28-29 दिन को हो गई।
अंततः महीनों में एक रूपता के लिए ऐसी | व्यवस्था की गई कि जनवरी, मार्च, मई, जुलाई, अगस्त, अक्टूबर और दिसंबर 31-31 दिन के अप्रैल, जून, सितंबर, नवंबर 30-30 दिन के और फरवरी 28 या 29 दिन को होने लगी। तब से महीनों का यही क्रम चला आ रहा है।
तुम इन्हें इस दोहे की मदद से भी याद रख सकते हो
सि.अप. जू.ने. तीस के, बाकी के इकतीस।
फरवरी अट्ठाइस की, चौथे सन् उन्तीस ।।
संवत् और भी हैं….
वर्ष समय की इकाई है। इस इकाई की गिनती कही से भी शुरू की जा सकती है, ठीक वैसे ही जैसे हम अपनी आयु की करते हैं। वर्ष की क्रमवार गिनती को संवत् कहते है।
आमतौर पर जो सन् या संवत् शुरू हुए वे किसी घटना के होने से, शासक के सिंहासन पर बैठने या शासक द्वारा आरंभ करने, धर्म विशेष आदि से संबंधित हैं।
भारत में लगभग 30 संवत् प्रचलित हैं। ये किसी न किसी रूप में हिंदू धर्म परंपरा से जुड़े हैं इनमें से कुछ चंद्रमा और सूर्य पर और शेष धर्म के सिद्धानों और फलित ज्योतिष पर आधारित हैं। सर्वाधिक प्रचलित संवत् विक्रम संवत् है, पर | शकसंवत् को राष्ट्रीय संवत् माना गया है।
कुछ प्रमुख संवत् इस प्रकार हैं
संवत्
1. संवत्
2. विक्रम संवत्
13. बौद्ध सेवा का
कब से
‘कलियुग के प्रारंभ से
कलि के 3044 वर्ष बाद से
महात्मा बुद्ध के बुद्धपद प्राप्त करने से
4.जैन संत्
470 विक्रम पूर्व
5. शक संवत्
6. चेदि (कलचुरि संवत्)
135 विक्रम संवत्
305 विक्रम संवत्
इनके अतिरिक्त 23 ऐसे संवत् भी हैं जो विदेशी
सभ्यताओं के संपर्क से भारत में प्रचलित हुए। कुछ
प्रमुख इस प्रकार हैं
संवत्
कब से
1. ईसवी सन्
56 विक्रम संवत् 679 विक्रम संवत्
2. सन्
• 689 विक्रम संवत्
3. पारसी संवत्
1401 विक्रम संवत्
4. बंगला संवत्
5. फसली संवत्
649 विक्रम संवत् 3642 विक्रम पूर्व
6. यहूदी संवत्
कुछ ऐसे संवत् भी हैं जिनका उल्लेख फ़ारसी ग्रंथों में मिलता है। इनमें से जुलूसी सन् अकबर ने शुरू किया था, जो बहादुर शाह जफ़र तक चलता रहा।
भारतीय कैलेंडर | Calendar history in hindi
भारतवर्ष में कैलेंडर का इतिहास बहुत पुराना है। वेदों में भी कैलेंडर के बारे में चर्चा की गई है। भारत मे मुख्य रूप से यज्ञ , व्रत तथा अन्य तीज त्योहारों की तिथियां तय करने के लिए मुख्य रूप से कैलेंडर की जरूरत पड़ी। जो कैलेंडर विकसित हुआ वह इन जरूरतों को ध्यान में रखकर ही बनाया गया था।
ऋग्वेद के समय (ईसा पूर्व 1500 वर्ष) एक नागर वर्ष को अवधि 360 दिन की मानी गई थी। इसमे 30-30 दिन के बारह मास थे। इसमें प्रत्येक पांच वर्ष बाद एक माह जोड़ दिया जाता था। यह चंद्र-सौर कैलेंडर था और इसमें सूर्य व चंद्रमा दोनों की गति को एक साथ ध्यान में रखा जाता था। चंद्रमा की दैनिक गति व सूर्य को मासिक स्थिति को सूर्य पथ के 27 या 28 नक्षत्रों द्वारा बताया जाता था।
अमावस्या तथा पूर्णमासी के बीच के दिन दो भागों में बांटे गए। वे दिन जब लगातार चंद्रमा का प्रकाश बढ़ता है शुक्ल पक्ष कहलाए और वे पंद्रह दिन जब चंद्रमा का प्रकाश लगातार घटता है कृष्ण पक्ष कहलाए।
इस नागर वर्ष के प्रत्येक दिन को 30 मुहूतों में बांटा गया। इस तरह 360 दिन वाले वर्ष में 10,800 मुहूर्त माने, गए। चंद्र-वर्ष व सौर वर्ष के बीच सामंजस्य एक अतिरिक्त माह जोड़कर किया जाता था। जरूरत पड़ने पर अतिरिक्त दिन भी जोड़े जाते थे।
पांच वर्षों का समय एक युग कहा गया। एक युग में, 61 नागर माह व 10 दिन थे। इस तरह औसतन प्रत्येक वर्ष में 365 दिन थे।
बाद में इस कैलेंडर में नक्षत्रों के साथ राशियों को भी प्रयुक्त किया गया। आजकल व्यवहारिक रूप से उपयोग किए जाने वाले कैलेंडर इसी पर आधारित है, जैसे विक्रम संवत् । सौर वर्ष के साथ तालमेल बिठाने के लिए हर तीन वर्ष बाद एक अतिरिक्त मास (अधिमास) जोड़ा जाता है। चंद्रमास के पक्षी यानी शुक्ल पक्ष कृष्ण पक्ष के दिनों को भी घटाया या बढ़ाया जाता है।
राष्ट्रीय कलेंडर शक संवत्’ माना गया है। यह वसंत ऋतु में विद्युत (वह समय जब सूर्य की किरणों का कोण विषुवत रेखा को पार करता है और पृथ्वी पर सब जगह दिन-रात बराबर लंबाई के होते हैं।) के अगले दिन से साधारण वर्ष में 22 मार्च और लीपवर्ष में 21 मार्च से आरंभ होता है। शक संवत् का उल्लेख भारतीय शिलालेखों में मिलता है। इसके संस्थापकों में कनिष्क, शालिवाहन आदि के नाम लिए जाते है।।
शक संवत् के वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़ और भाद्र महीने 31 दिन के और अश्विन, कार्तिक, अग्रहायण, पौष, माघ और फागुन 30 दिन के होते हैं। पहला महीना चैत्र साधारण वर्षो में 30 दिन का और लीपवर्ष में 31 दिन का होता है।
साधारण वर्ष में 365 दिन और लीपवर्ष में 366 दिन होते है। ग्रेगोरियन कैलेंडर से शक संवत् 78 वर्ष पीछे चलता है। लीपवर्ष निकालने के लिए चालू संवत में 78 जोड़कर 4 से भाग दिया जाता है। यदि जोड़ सैकड़ा आए तो लीप वर्ष तभी होगा जब वह 400 से विभाजित हो ।
ऋतुओं की दृष्टि से वैशाख-ज्येष्ठ ग्रीष्म आषाढ़ श्रवण वर्षा भाद्र आश्विन शरद कार्तिक अग्रहायण हेमंत पौष माघ शिशिर और फागुन चैत्र वसंत के महीने माने जाते हैं।
मुस्लिम कैलेंडर | Calendar history in hindi
इसमें चंद्रमा को आधार माना गया है, सूर्य की ओर ध्यान नहीं दिया गया है। इस वजह से इसके महीने ऋतुचक्र के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते और सरकते रहते हैं। रजब का महीना एक वर्ष सर्दियों में पड़ सकता है और कुछ वर्षो बाद वह गर्मियों में आ सकता है।
हिजरी कैलेंडर में 30 तथा 29 दिनों के बारह चंद्र मास माने गए। मुहर्रम 30 दिन, सफ़र 29 दिन, रबी प्रथम 29 दिन, रबी द्वितीय 29 दिन, जमादी प्रथम 30 दिन, जमादी द्वितीय 29 दिन, रजब 30 दिन, शअबान 29 दिन, रमज़ान 30 दिन, शव्वाल 29 दिन जिलक़ादा 30 दिन और जिलहिना 29 दिन के माने जाते हैं। रमज़ान का नव महीना उपवास का होता है।
हिजरी संवत् भारत, सऊदी अरब, जोर्डन, यमन, फारस, मोरक्को आदि देशों में प्रचलित है।
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